इत्यादि। यंहा इस बात को कहने के प्रयोजन को समझने से पहले तत्कालीन सामजिक और आर्थिक सरंचना को समझाना जरूरी होगा.
2.
समाजिक और आर्थिक सरंचना की कोई भी अवधारणा [कम्युनिज़्म/केपिटलिज़्म/आदी] संतुलित व्यवस्था नहीं दे पाई है फ़िर उस पर परिवर्तन की गति से सामंजस्य रखने का नाम ही अनुकूलनशीलता है-कठिन कर्म है.
3.
समाजिक और आर्थिक सरंचना की कोई भी अवधारणा [कम्युनिज़्म/केपिटलिज़्म/आदी] संतुलित व्यवस्था नहीं दे पाई है फ़िर उस पर परिवर्तन की गति से सामंजस्य रखने का नाम ही अनुकूलनशीलता है-कठिन कर्म है.
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समाजिक और आर्थिक सरंचना की कोई भी अवधारणा [कम्युनिज़्म / केपिटलिज़्म / आदी] संतुलित व्यवस्था नहीं दे पाई है फ़िर उस पर परिवर्तन की गति से सामंजस्य रखने का नाम ही अनुकूलनशीलता है-कठिन कर्म है.
5.
अनाज के दाम घटते और अनाज भण्डारों में व्यर्थ पड़ा रहता? इसलिए प्रधानमंत्री के इस बयान को हम गरीबी और कुपोषण के सिलसिले में भले ही आर्थिक सरंचना की विफलता कहें, लेकिन बाजार और व्यापारी के हित-पोषण की अर्थशास्त्रीय दृष्टि से यह सफलता का सूक्ति वाक्य है।